Saturday, May 8, 2021

8 WAYS: ज़िन्दगी को अपने कब्ज़े में रखने के आठ पक्के तरीके

 


ज़िन्दगी को अपने कब्ज़े में रखने के आठ पक्के तरीके

नंबर १: अपने दर्द ( WOUND ) को ज्ञान की दीवानगी ( WISDOM ) में बदल दीजिये

नंबर २: ये मत देखिये कि आपका सपना, आपके लक्ष्य से अभी कितनी दूर है, बल्कि ये देखिये कि हमारे कदम जहाँ से चले थे वहां से कितनी दूर आ चुके है।

नंबर ३: ज़िन्दगी में SLIGHT EDGE RULE अपना लीजिये ! मतलब हर रोज़ अपने MIND , BODY और Soul के लिए कोई एक नया काम या कोई काम ज़रूर कीजिए, एक बार इस वाक्य को और पढ़िए, मतलब समझिये और शुरू हो जाइये !

नंबर ४: दुनिया को या दुनिया के लोगों को अपनी नज़र से देखना, परखना, समझना बंद तो आप नहीं कर सकते पर अपने काबू में रखिये, जो अच्छा है ज़रूर अपना लजिए, जो बुरा है उस बात कि न चर्चा कीजिये न ही लोगों के बीच रखिये, वक़्त अपने पास बहुत काम है, काम ज़्यादा है।

नंबर ५: किसी को भी वो चाहे आपके मित्र हों, पडोसी हों, रिश्तेदार हों, आपके customer हों, उन्हें कुछ भी ज़बरदस्ती थोपने, बेचने या थमा देने कि होड़ से बाहर आजाइये और उन्हें केवल value दिखाइए, बताइये और समझाइये कि ये जो आपने प्रस्ताव रखा है उससे उनकी ज़िन्दगी में क्या और कैसे बद्लाव आ सकते है, उनकी परेशानी को कैसे कम कर सकते है, वो उस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करें आपकी आत्मा और दिल अवश्य खुश रहेगा, तो बस खुश रहिये।

नंबर ६: आपकी रोज़मर्रा कि ज़िन्दगी में, कार्यालय में, पड़ोस में, गांव में, शहर में या देश दुनिया में जो भी दर्द है, पीड़ा है, परेशानी है उससे व्यथित या कोसने के बजाय ये देखना शुरू कीजिये कि सम्भावना कहाँ है , यक़ीन मानिये opportunity यहीं पर छुपी बैठी है, चलिए उठिये और अपनी ज़िन्दगी के लिए निकल लीजिये !

नंबर ७: आलस्य करने में आलस्य करों! आलस्य मत करों! आपके अंदर तीन तरह के लोग रहते हैं - Dreamer जो आपको सपने दिखाता है , Critic जो आपको रोकता है, डराता है, मना करता है और DOer जो केवल पहले वाले को सुनता है और बस planning के साथ सपने के पीछे लग जाता है ये पुरानी कहावत: जितनी चादर हो उतना ही पैर फैलाना चाहिए (नहीं मानता ) बल्कि चिल्ला के कहता है क्यों भाई ! मैं तो पहले अपना पैर पसारूंगा फिर उस नाप कि चादर लाने कि योजना बनाऊंगा क्योकि इस तरह के दिमाग वाले को पता है Failure is verb not Noun

नंबर ८: दुष्यंत कुमार कि ये कविता ज़रूर पढ़िए:

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी

शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

पढ़ने के लिए धन्यवाद्!

आपका,

सर्वेंद्र विक्रम सिंह 


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