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बंगाल में बीजेपी जीती हुई बाज़ी कैसे हार गई और बाजीगर का ठप्पा लगवा लिया, ये एक ऐसा विषय है जिस पर लिखना और आपका पढ़ना बेहद जरूरी है खासकर वो जो बिजनेस करते है, पढ़ाई करते है, राजनीति करते है ... कुछ सीखना चाहते हैं या अपने अपने विषय में पारंगत हैं और हमारे इस लेख पे कुछ भी टिप्पणी करके इस लेख को नजरंदाज कर सकते हैं।
मैं ना ही राजनीति से संबंध रखता हूं और ना ही राजनीति का विश्लेषक हूं इस दौरान बंगाल के चुनाव को पर्दे के ऊपर और पर्दे के पीछे से देखकर कुछ अपने लिए लिखा और विश्वास के साथ निम्नांकित बिन्दुओं द्वारा संक्षेप में साझा कर रहा हूं ...
१. राजनीति में वोटिंग वाले दिन से एक माह, एक सप्ताह, तीन दिन और अंतिम दिन तक कोर टीम के साथ डटे रहने की योजना का लाभ प्रशांत किशोर और बंगाल के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने बखूबी निभाया और बीजेपी की तीन महीने पहले की गई मेहनत पे पानी फेर दिया..
२. पीके और अभिषेक ने हर एक बूथ पे कैसी कोर टीम होनी चाहिए, क्या जातिय समीकरण है, कौन अपने साथ है, कौन साथ नही है.. जो साथ है उसपे भरोसा करने का KRA और जो साथ नही है उसको साथ में ले लेने का KRA सुनियोजित ढंग से बना लिया गया था और SPEEDY EXECUTION के साथ हर दिन की रिपोर्टिंग कोर टीम से ली जाती थी।
३. वोटिंग लिस्ट का ३ बार सत्यापन किया गया, पहले फोन के माध्यम से, बात करके, संदेश से, व्हाट्सएप से और फिर स्वतः मिलकर RELIGIOUSLY किया गया.. बीजेपी हवा में थी क्योंकि बाकी काम तो मोदी जी, शाह साहब, नड्डा जी और अपने योगी जी करते.. लोकल टीम का फोकस पूरी तरह बिखर चुका था।
४. अपने विरोधी वोटर को मिलने की STRATEGY एकदम अलग तरीके से की गई, वोटर के परिवार के INFLUENCER को टीएमसी ने brainwash कर दिया मां, माटी और मानुष को जी भर के उनके दिल में ठूंस दिया .. बाकी का काम हो गया।
५. Social Media का स्मार्ट उपयोग किया गया क्रिएटिव के बजाय कंटेंट पे फोकस किया गया जो सीधे बंगाली की छाती में धंस जाए.. इसके लिए बंगाल की intellectual पीढ़ी को बंगाली और अंग्रेजी माध्यम में लेख लिखने का ज़िम्मा दिया गया और लेख ऐसा कि पता ही न चले कि राजनीति से प्रेरित है।
६. चाणक्य की नीति को संभवतः ध्यान में रखते हुए दो प्रकार के stage तैयार किए गए एक वो जो बीजेपी और आम जनमानस देख रहा था और इस stage का ज़िम्मा था सुश्री ममता बनर्जी का जिन्होंने अपने तीखे तेवर से बीजेपी और मीडिया को मसालेदार शब्दों का जाल बिछा के और उसमे फंसा कर रख दिया। अगर आप ध्यान दें तो पता चलेगा कि शुरू से बीजेपी के मंच का संचालन पूरी तरह से ममता जी ने अपने ही इर्द गिर्द घुमा के रख दिया और मोदी जी और पूरी बीजेपी की कोर टीम भी "दीदी ओ दीदी" के तड़के में FRY हो गई।
७. दूसरी तरफ भतीजे ने PK के साथ मिलके backstage से बहुत कम मंच के संचालन और रैली पे ज़ोर दिया अपितु इन दोनों ने बूथ स्तर पे टीम के साथ DVR (DAILY VOTE REPORT) बना रखी थी, बीजेपी का पूरा का पूरा ध्यान सिर्फ ममता दीदी के भाषण पर था और उसी का बदला अगली रैली या भाषण में ज़ोरदार तरीके से देखने को मिला। इसमें मज़ा दोनो पक्षों को आया .. जनता को भी और मीडिया की टीआरपी को भी ।
८. ममता दीदी ने अपने राजनीतिक अनुभव से अपनी सफेद साड़ी में पर्चा, चर्चा और खर्चा की गांठ मार दी थी इस गांठ में बीजेपी के खिलाफ उन शब्दों, वाक्यों या कृत्य का इस्तेमाल किया गया जो बीजेपी अच्छे और बुरे के पैमाने पे देखते हुए जनता के सामने पद और गरिमा का उदाहरण दे रही थी.. और यही तो STRATEGY थी और शायद टीएमसी को अच्छे से पता था कि EVERYTHING IS FAIR IN LOVE & WAR
९. बीजेपी CENTRAL FORCE का दम भरती रही सारा ध्यान RURAL AREA में केंद्रित कर दिया और शहर के अंदर खेला हो गया, RURAL AREA में जीत का अंतर कम और शहरी क्षेत्र में जीत का अंतर बहुत ज़्यादा देखा गया। इसे कहते हैं FOCUS DIVERT करके गोल मार देना .. आपने ध्यान दिया होगा ममता दीदी ने मंच से "खेला होबे" के साथ ही साथ फुटबॉल का इस्तेमाल अपने हर संबोधन के बाद अपने हाथों से उछाल कर किसी को CATCH करवाया ये असल में हर दिन टीम को ये संकेत था कि MAN-TO-MAN MARKING करो !
१०. बीजेपी ये कारण खोज नहीं पाई कि वो सारे टीएमसी के कद्दावर नेता जो बीजेपी में शामिल हुए आखिर वो शामिल क्यों हुए। क्योंकि ये सारे नेतागण अभिषेक बनर्जी की खुफिया तंत्र में उजागर होने के लिए और फंसने के कगार पे खड़े थे, इन्हे टिकट तो वैसे ही टीएमसी नहीं देती। इसीलिए इन्होंने भोली बीजेपी का दामन थाम लिया, लोकल तथाकथित कार्यकर्ता बीजेपी आलाकमान को अपने अनुसार भ्रमित करते रहे ।
११. लेफ्ट, कांग्रेस, ओवैसी इत्यादि ने ज़ोर पूरा लगाया कि ममता बनर्जी को हिला दिया जाए, इन्होंने विरोध का सिर्फ नाटक किया और खुद औंधे मुंह गिर गए..
अब टीएमसी तो जीत गई और बीजेपी बहुत ही SMART MOVE चलने वाली योग्य पार्टी है और मजबूत OPPOSITION देने की पूरी कोशिश करेगी उसे इंतजार है कि ममता दीदी अपना मुख्यमंत्री पद अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को दे दे और ये MOVE चलते ही अगले चुनाव में टीएमसी का शासन समाप्त हो जाना तय है .. NATIONAL OPPOSITION ममता दीदी को राष्ट्रीय राजनीति का नायक बनाने का मन बना चुकी है क्योंकि इस गुट में PATIENCE नही है दीदी को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में आगे ले जाने के लिए अगर कामयाब हो गई तो टीएमसी का भविष्य बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस जैसा होना तय है...
आशा करता हूं कि पाठक इस लेख को बहुत ही स्कारात्मक ढंग से लेते हुए ही उपरोक्त बिंदुओं से कुछ अपने मतलब का अर्थ निकाल लेंगे वैसे भी सरकार आती है जाती है और हम अपनी लड़ाई अपनी ज़िद पे अपने हौसले से और अपने ज्ञान से लड़ते हुए अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं ।
समय देकर पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद!
© सर्वेंद्र विक्रम सिंह

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